Description
यह सृष्टि कुदरत के नियमों के अनुसार चलती है परन्तु मानव अपनी अज्ञानता के कारण हमेशा इस पर विजय प्राप्त करने का असफल प्रयास करता रहा है जिससे अनेक भीषण समस्याएं पैदा हो गई हैं। विकास की आधुनिक तकनीकों को अपनाने के बावजूद विगत दशकों में कृषि के विकास की गति को चिरस्थायी बनाना संभव नही हो पाया है। हरित क्रंाति के चलते जहां एक ओर खाद्यान्नों का सकल उत्पादन बढ़ा है वहीं दूसरी ओर उच्च उपज की प्रजातियों की खेती के चलते कृषि का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ गया। कृषि निवेशों, खासकर रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशी, खरपतरवारनाशी और कवक नाशियों के प्रयोग से मृदा उर्वरता में जहां एक ओर असंतुलन आया वही दूसरी ओर कार्बनिक पदार्थो की कमी से उसकी संरचनात्मक गुणवत्ता में कमी परिलक्षित हो रही है। भारत के साथ, विश्व के अनेक देशों में कृषि विकास के स्थायित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है। कृषि क्रियाओं की सफलता के लिए मौसम की गतिविधियों का गहराई से ज्ञान होना आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य होता है। भारत में प्राचीन काल से ही मानसून की भविष्यवाणी ज्योतिष विद्या में पारंगत अनुभवी व्यक्तियों द्वारा परम्परागत ढंग से की जाती थी। वर्षा का इस प्रकार अनुमान लगाना आज भले ही अवैज्ञानिक हो लेकिनं लगभग 80 प्रतिशत यह अनुमान सटीक बैठता है। प्रस्तुत पुस्तक में इन्ही क्रिया-कलापों के ज्ञान को संजोने का एक प्रयास है। आशा है कि मेरा यह प्रयास लुप्त होती हमारे पारंपरिक कृषि व मौसम ज्ञान को सभांलते हुए किसाने के लिए लाभदायक सिद्व होगी।
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